Saturday, January 23, 2010
एक बार सरदार वल्लभभाई पटेल कांग्रेस के लिए निधि-संग्रह के काम से रंगून गये। उस सयम जब-जब वे चीनियों के पास चन्दा उगाहने जाते, तब-तब चीनी लोग चन्दे की सूची में अपना कोई आंकड़ा चढ़ाते नहीं थे, बल्कि घर के अन्दर जाकर यथाशक्ति जो रकम उन्हें देनी होती, हाथों-हाथ दे दिया करते थे।
चीनियों के इस व्यवहार को देखकर सरदार ने एक चीनी सज्जन से इसका कारण पूछा।
उन चीनी सज्जन ने जवाब में कहा, "हम इसे धर्म-ऋण कहते हैं। सूची में आंकड़ा चढ़ाने के बाद यदि उतनी रकम हाथ में न हुई, तो उसे चुकाने में जितने दिनों की देर होती है, उतने दिन का ऋण ही हम पर चढ़ता हैं। धर्म-ऋण का यह पातक हम लोगों में सबसे बुरा माना जाता है। इसलिए हमें चन्दे में या कोष में कोई रकम देनी होती है, तो तुरन्त देकर इस ऋण से मुक्त होने का अनुभव करते हैं।"
Born: October 31, 1875 जन्म: 31 अक्टूबर 1875
Died: December 15, 1950 मृत्यु: 15 दिसम्बर 1950
Achievements: Successfully led Kheda Satyagraha and Bardoli revolt against British government; elected Ahmedabad's municipal president in 1922, 1924 and 1927; elected Congress President in 1931; was independent India's first Deputy Prime Minister and Home Minister; played a key role in political integration of India; conferred Bharat Ratna in 1991. उपलब्धियों: सफलतापूर्वक नेतृत्व में खेड़ा सत्याग्रह और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत Bardoli, अहमदाबाद के 1922, 1924 और 1927 में नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए, 1931 में कांग्रेस अध्यक्ष चुना था, स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री, भारत की राजनैतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई , 1991 में भारत रत्न प्रदान किया.
Sardar Patel was popularly known as Iron Man of India. सरदार पटेल लोकप्रिय भारत के लौह पुरुष के रूप में जाना जाता था. His full name was Vallabhbhai Patel. उनका पूरा नाम वल्लभभाई पटेल था. He played a leading role in the Indian freedom struggle and became the first Deputy Prime Minister and Home Minister of India. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई थी और पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री भारत बन गया. He is credited with achieving political integration of India. वह भारत का राजनैतिक एकीकरण को प्राप्त करने का श्रेय जाता है.
Vallabhbhai Patel was born on October 31, 1875 in Nadiad, a small village in Gujarat. वल्लभभाई पटेल 31 अक्तूबर 1875 पर नाडियाड, गुजरात में एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ था. His father Jhaverbhai was a farmer and mother Laad Bai was a simple lady. उनके पिता एक किसान झवेर भाई और माँ Laad बाई था एक साधारण औरत थी. Sardar Vallabhai's early education took place in Karamsad. सरदार Vallabhai प्रारंभिक शिक्षा Karamsad में हुई. Then he joined a school in Petlad. फिर वह Petlad में एक स्कूल में शामिल हो गए. After two years he joined a high school in a town called Nadiad. दो साल बाद वह एक शहर में एक हाई स्कूल में शामिल हुए कहा नाडियाड. He passed his high school examination in 1896. वह 1896 में अपने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की. Sardar Vallabhbhai Patel was a brilliant student throughout his schooling. सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी स्कूली शिक्षा में एक प्रतिभाशाली छात्र थे.
Vallabhbhai wanted to become a barrister. वल्लभभाई के लिए एक बैरिस्टर बनना चाहता था. To realize this ambition he had to go to England. इस महत्वाकांक्षा वह इंग्लैंड जाने का एहसास था. But he did not have the financial means to even join a college India. लेकिन वह वित्तीय साधन के लिए भी एक कॉलेज के भारत में शामिल नहीं था. In those days a candidate could study in private and sit for an examination in Law. उन दिनों में एक उम्मीदवार निजी में अध्ययन और विधि में एक परीक्षा के लिए बैठ सकता है. Sardar Vallabh Bhai Patel borrowed books from a lawyer of his acquaintance and studied at home. सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपनी परिचित के एक वकील से किताबें उधार और घर पर अध्ययन किया. Occasionally he attended courts of law and listened attentively to the arguments of lawyer. कभी कभी वह कानून की अदालतों में भाग लिया और वकील के तर्क को ध्यान से सुना. Vallabhbhai passed the Law examination with flying colours. वल्लभभाई उड़ान रंगों के साथ कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की.
Sardar Vallabhbhai Patel started his Law practice in Godhra. सरदार वल्लभभाई पटेल गोधरा में अपने कानून अभ्यास शुरू कर दिया. Soon his practice flourished. जल्द ही अपनी प्रैक्टिस निखरा. He got married to Jhaberaba. वह Jhaberaba से शादी कर ली. In 1904, he got a baby daughter Maniben, and in 1905 his son Dahyabhai was born. 1904 में उन्होंने एक बच्चे की बेटी Maniben है, और 1905 में उनके बेटे Dahyabhai का जन्म हुआ. Vallabhbhai sent his elder brother Vitthalbhai, who himself was a lawyer, to England for higher studies in Law. वल्लभभाई कानून में उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड को अपने बड़े भाई Vitthalbhai, जो खुद एक वकील को भेजा गया था. Patel was only thirty-three years old when his wife died. पटेल केवल तैंतीस साल पुराना है जब उसकी पत्नी मर गई थी. He did not wish to marry again. वह फिर से शादी करना नहीं चाहता था. After his brother's return, Vallabhbhai went to England. अपने भाई की वापसी के बाद, वल्लभभाई इंग्लैंड गया था. He studied with single-minded devotion and stood first in the Barrister-at-Law Examination. वह पढ़ाई के साथ एकल भक्ति दिमाग और बैरिस्टर में प्रथम स्थान अर्जित किया, पर भाभी परीक्षा.
Sardar Patel returned to India in 1913 and started his practice in Ahmedabad. सरदार पटेल ने 1913 में भारत लौटे और अहमदाबाद में अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दिया. Soon he became popular. जल्दी ही वह लोकप्रिय बन गया. At the urging of his friends, Patel contested and won elections to become the sanitation commissioner of Ahmedabad in 1917. पर अपने दोस्तों के आग्रह, पटेल चुनाव लड़ा और चुनाव के लिए अहमदाबाद के स्वच्छता 1917 में आयुक्त बन जीता. Sardar Patel was deeply impressed by Gandhiji's success in Champaran Satyagraha. सरदार पटेल गहरा चंपारण सत्याग्रह में गांधीजी के सफलता से प्रभावित हुआ था. In 1918, there was a drought in the Kheda division of Gujarat. 1918 में, गुजरात के खेड़ा डिवीजन में एक सूखा था. Peasants asked for relief from the high rate of taxes but the British government refused. किसानों करों की ऊंची दर से राहत के लिए कहा, लेकिन ब्रिटिश सरकार से इनकार कर दिया. Gandhiji took up peasants cause but could not devote his full time in Kheda. गांधी जी ने किसानों कारण लिया लेकिन समर्पित खेड़ा में अपने पूरे समय नहीं कर सके. He was looking for someone who could lead the struggle in his absence. वह कोई है जो उसकी अनुपस्थिति में संघर्ष हो सकती के लिए देख रहा था. At this point Sardar Patel volunteered to come forward and lead the struggle. इस बिंदु पर सरदार पटेल को आगे आकर संघर्ष ले आए. He gave up his lucrative legal practice and entered public life. वह अपनी कमाई कानूनी अभ्यास दिया और सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया.
Vallabhbhai successfully led peasants revolt in Kheda and the revolt ended in 1919 when the British government agreed to suspend collection of revenue and roll back the rates. वल्लभभाई सफलतापूर्वक खेड़ा में किसान विद्रोह और विद्रोह का नेतृत्व किया 1919 में खत्म हुई, जब ब्रिटिश सरकार को राजस्व की वसूली स्थगित और वापस दरों रोल पर सहमत हुए. Kheda Satyagraha turned Vallabhbhai Patel into a national hero. खेड़ा सत्याग्रह एक राष्ट्रीय नायक में वल्लभभाई पटेल दिया. Vallabhbhai supported Gandhi's Non-Cooperation Movement, and as president of the Gujarat Congress, helped in organizing bonfires of British goods in Ahmedabad. वल्लभभाई गांधी की गैर सहकारिता आंदोलन और गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में, अहमदाबाद में ब्रिटिश वस्तुओं की bonfires आयोजन में मदद का समर्थन किया. He gave up his English clothes and started wearing Khadi. वह अपने कपड़े अंग्रेजी दिया और खादी पहनने शुरू कर दिया. Sardar Vallabh Bhai Patel was elected Ahmedabad's municipal president in 1922, 1924 and 1927. सरदार वल्लभ भाई पटेल अहमदाबाद के 1922, 1924 और 1927 में नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए. During his terms, Ahmedabad was extended a major supply of electricity and underwent major education reforms. अपने शब्दों के दौरान, अहमदाबाद के एक बड़े बिजली की आपूर्ति बढ़ा और प्रमुख शिक्षा सुधार लिया गया था. Drainage and sanitation systems were extended over all the city. जल निकासी और सफाई व्यवस्था सारे शहर में लागू किया गया.
In 1928, Bardoli Taluka in Gujarat suffered from floods and famine. सन् 1928 में, Bardoli गुजरात में तालुका बाढ़ और अकाल से सामना करना पड़ा. In this hour of distress the British government raised the revenue taxes by thirty percent. संकट की इस घड़ी में ब्रिटिश सरकार के तीस प्रतिशत की राजस्व कर उठाया. Sardar Patel took up cudgels on behalf of the farmers and appealed to the Governor to reduce the taxes. सरदार पटेल किसानों की ओर से उठाया समर्थन में उतर आए और राज्यपाल से अपील की कि करों को कम. The Governor refused and the government even announced the date of the collection of the taxes. राज्यपाल से इनकार कर दिया और सरकार भी करों के संग्रह की तिथि की घोषणा की. Sardar Patel organized the farmers and told them not to pay even a single pie of tax. सरदार पटेल किसानों का आयोजन किया और उन्हें कर का एक भी पाई का भुगतान नहीं कहा था. The government tried to repress the revolt but ultimately bowed before Vallabhbhai Patel. सरकार के विद्रोह को दबाने की कोशिश की लेकिन अंततः वल्लभभाई पटेल के सामने झुके. It was during the struggle and after the victory in Bardoli that caused intense excitement across India, that Patel was increasingly addressed by his colleagues and followers as Sardar. यह और संघर्ष के दौरान था Bardoli में जीत के बाद कि भारत भर में तीव्र उत्तेजना का कारण बना, कि पटेल तेजी से उनके सहयोगियों और सरदार के रूप में अनुयायियों ने संबोधित किया.
Disobedience Movement in 1930. अवज्ञा आंदोलन 1930 में. After the signing of Gandhi-Irwin pact in 1931, Sardar Patel was released and he was elected Congress president for its 1931 session in Karachi. गांधी के हस्ताक्षर 1931 में इरविन समझौते के बाद, सरदार पटेल और जारी वे कराची में अपने 1931 सत्र के लिए कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित किया गया था. Upon the failure of the Round Table Conference in London, Gandhiji and Sardar Patel were arrested in January 1932 and imprisoned in the Yeravada Central Jail. दौर लंदन, गांधी जी और सरदार पटेल में टेबल सम्मेलन की विफलता करने पर जनवरी 1932 में गिरफ्तार किया गया और Yeravada सेंट्रल जेल में कैद थे. During this term of imprisonment, Sardar Patel and Mahatma Gandhi grew close to one another, and the two developed a close bond of affection, trust, and frankness without reserve. कारावास, सरदार पटेल और महात्मा गांधी की इस अवधि के दौरान एक दूसरे के करीब हो गया है, और दो प्यार, विश्वास का एक करीबी रिश्ता विकसित की है, और वाक्य की स्पष्टता रिज़र्व के बिना. Sardar Patel was finally released in July 1934. सरदार पटेल अंततः जुलाई 1934 में जारी किया गया था.
In August 1942, the Congress launched the Quit India Movement. अगस्त 1942 में, कांग्रेस के भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया. The government jailed all the important leaders of the Congress, including Vallabhai Patel. सरकार कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेताओं, Vallabhai पटेल सहित जेल. All the leaders were released after three years. सभी नेताओं को तीन साल के बाद जारी किए गए. After achieving independence on 15th of August 1947, Pandit Jawaharlal Nehru became the first Prime Minister of independent India and Sardar Patel became the Deputy Prime Minister. अगस्त 1947 के 15 वें पर स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, पंडित जवाहर लाल नेहरू के पहले स्वतंत्र भारत और सरदार पटेल के प्रधानमंत्री बने उप प्रधानमंत्री बन गए. He was in charge of Home Affairs, Information and Broadcasting and the Ministry of States. वे गृह मंत्रालय, सूचना और प्रसारण तथा राज्यों के मंत्रालय के प्रभारी थे.
There were 565 princely states in India at that time. वहाँ उस समय भारत में 565 रियासतों थे.Some of the Maharajas and Nawabs who ruled over these were sensible and patriotic. महाराजाओं और नवाबों के कुछ लोग जो इन समझदार और देशभक्त थे पर शासन किया. But most of them were drunk with wealth and power. लेकिन उनमें से ज्यादातर धन और शक्ति के साथ शराब पी रहे थे.They were dreaming of becoming independent rulers once the British quit India. वे स्वतंत्र शासक बनने का सपना देख रहे थे एक बार ब्रिटिश भारत छोड़ दिया. They argued that the government of free India should treat them as equals. उन्होंने दलील दी कि स्वतंत्र भारत की सरकार ने उन्हें इलाज के रूप में बराबरी चाहिए. Some of them went to the extent of planning to send their representatives to the United Nations Organization. उनमें से कुछ को संयुक्त राष्ट्र संगठन के लिए अपने प्रतिनिधि भेजने की योजना बना की हद तक चला गया. Patel invoked the patriotism of India's monarchs, asking them to join in the freedom of their nation and act as responsible rulers who cared about the future of their people. पटेल भारत के सम्राटों की देशभक्ति लागू कर, उन्हें अपने देश और शासक जिम्मेदार हैं जो अपने लोगों के भविष्य के बारे में परवाह के रूप में कार्य की स्वतंत्रता में शामिल होने के लिए पूछ रहे हैं. He persuaded the princes of 565 states of the impossibility of independence from the Indian republic, especially in the presence of growing opposition from their subjects. उन्होंने भारतीय गणतंत्र से आजादी के असंभव के 565 राज्यों के राजकुमारों को राजी है, खासकर उनके विषयों से बढ़ते विरोध की उपस्थिति में. With great wisdom and political foresight, he consolidated the small kingdoms. महान बुद्धि और राजनीतिक दूरदर्शिता के साथ, वह छोटे राज्यों समेकित. The public was with him. सार्वजनिक उसके साथ थी. He tackled the Nizam of Hyderabad and the Nawab of Junagarh who initially did not want to join India. वह हैदराबाद के निजाम और जूनागढ़ के नवाब घेरने की कोशिश की, जो शुरू में भारत को शामिल नहीं करना चाहता था. Sardar Patel's untiring efforts towards the unity of the country brought success. सरदार पटेल के देश की एकता के लिए अथक प्रयासों की सफलता के लाया. He united a scattered nation without much bloodshed. वह इतना रक्तपात के बिना एक बिखरे हुए संयुक्त राष्ट्र. Due to the achievement of this massive task, Sardar Patel got the title of 'Iron Man'. इस वजह से यह बड़े पैमाने पर कार्य की उपलब्धि के लिए, सरदार पटेल 'का खिताब मिला आयरन' मैन. Sardar Patel died of cardiac arrest on December 15, 1950. सरदार पटेल ने 15 दिसम्बर 1950 को हृदय की गिरफ्तारी की मृत्यु हो गई. For his services to the nation Sardar Patel was conferred with Bharat Ratna in 1991. 1991 में भारत रत्न से सम्मानित अपनी सेवाओं के लिए देश को सरदार पटेल के लिए गया था.
भारतीय इतिहास के पन्ने सदियों से अपनी दासता की गाथा प्रस्तुत करते हैं। भारत सदियों से विदेशियों के अधीन रहा। आर्यो के पश्चात शक-हुण-कुषाण; शिया-सन्नी-मुगल-पठान एवं अन्त में डच-पुर्तगीज-फ्रेन्च-अंग्रेजों ने भारत में अपना शासन स्थापित कर सतत शोषण किया। विदेश आक्रमणकारियों एवं भारतीय शासकों के काल में राजतन्त्र स्थापित रहा। अंग्रेजों ने इस देश में प्रजातन्त्र की नींव रखी। भारतीय मूल के निवासियों में छत्रपति शिवाजी महाराज ने भारतीय राष्ट्र की पुन: स्थापना की कोशिश की। उनका यह सपना उनकी मृत्यु के पश्चात छिन्न-भिन्न हो गया।
मुगलकालीन बादशाह जहांगीर के शासनकाल में, अंग्रेज, सन् 1600 ईसवी में भारत व्यापार करने “East India Company” बनाकर आये। सन 1757 में बगांल के नवाब सिराजुद्दौला को प्लासी के युद्ध में हराकर अंग्रेजों ने भारत में अपने साम्राज्य की स्थापना की। सन् 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह हुआ, भारत के शासन की बागडोर “East India Company” से छीनकर‘British Government’ ने अपने हाथों में ले ली। इस तरह भारत भी कभी सूर्यास्त न देखने वाले अंग्रेजी राज्य का एक उपनिवेश बन गया।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का इतिहास हमारे महापुरुषों के त्याग, तपस्या एवं बलिदान से भरा-पड़ा है। सरदार वल्लभ भाई पटेल को इन महापुरुषों के अग्रिम पंक्ति में गिना जाता है।
गुजरात राज्य के अहमदाबाद-बड़ौदा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है, जिला-खेड़ा। खेड़ा जिला के बोरसद तालुका में ग्राम करमसद निवासी झवेर भाई पटेल के पांच पुत्रों एवं एक पुत्री से भरे पूरे परिवार में वल्लभ भाई पटेल का जन्म हुआ। मां लाड़ बाई ने ननिहाल नाडिया डमें 31 अक्टूबर 1875 में एक पुत्र को जन्म दिया, नाम रखा गया वल्लभ भाई। भाइयों में वल्लभ का क्रम चौथा था; सोमा, नरसिंह और विट्ठल वल्लभ से बड़े थे एवं काशी एवं डाहीबा वेन छोटे।
सदियों पहले पंजाब-यू.पी. से चलकर गुजरात में आ बसे इन खेतिहर जातियों को तत्कालीन शासकों ने खेती-किसानी करने जमीन का पट्टा प्रदान किया, जिससे इनको पाटीदार, पटेल, अमीन, कण्वी, कुनबी, कूर्मि कहा जाता है। पाटीदारों में लेवा एवं कड़वा उपजाति है। लेवा उपजाति में वल्लभ भाई का परिवार आता है।
गुजरात में ऐसी कहानी प्रचलित है, कि 'प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम' के समय सन् 1958 में युवा झवेर भाई घर से भागकर झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की सेना में शामिल हो गये थे। अंग्रेजों ने उन्हें बन्दी बनाकर इंदौर के राजा होल्कर के सुपूर्द कर दिया। झवेर भाई ने शतरंज के शौकीन राजा होल्कर को एक चाल सुझाकर हारने से बचाया। झवेर भाई की चतुराई से प्रसन्न होकर राजा ने झवेर भाई को मुक्त कर अपने राज्य में नौकरी देने का प्रस्ताव रखा। लेकिन झवेर भाई वापस गुजरात आकर पैतृक व्यवसाय कृषि में संलग्न हो गये। उनके पास लगभग 10 एकड़ खेती थी। झवेर भाई की मृत्यु सन् 1918 में 85 वर्ष की उम्र में हुई।
वल्लभ भाई ने अपनी प्राथमिक शिक्षा करमसद के स्कूल में 7-8 वर्ष की उम्र से शुरु की। दस वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने शिक्षक से प्रश्न पूछा तो उत्तर में शिक्षक द्वारा जवाब गाली के साथ मिला-'खुद पढ़कर सिखो-मुझे मत पूछो'। तब से वल्लभ भाई ने खुद काम कर सीखने की आदत डाली। गांव में प्रायमरी पास करके, आगे अंग्रेजी की पढ़ाई करने वल्लभ भाई ने नवसारी जाने की पिता से अनुमति चाही। पिता ने कहा ''हमारे पास इतने रुपये नहीं कि तुम्हें अंग्रेजी शिक्षा के लिये नवसारी भेज सकूं। हल चलाओ, घर की खेती में हाथ बटाओं।'' लगातार 2 वर्षो तक अपने हाथों से खेती कर पैसा कमाया और अपनी आगे की शिक्षा जारी रखी। झवेर भाई, वल्लभ भाई को खेत में भी पहाड़ा रटाया करते थे। मां लाड़ बाई घरेलु एवं दयालु प्रकृति की महिला थी। छै बच्चों का परिवार एवं घर की जिम्मेदारी की वजह से वल्लभ भाई की देख भाल करने के लिये माता -पिता ज्यादा समय नहीं दे पाते थे। विद्यार्थी जीवन से ही वल्लभ भाई में अन्याय से लड़ने की प्रवृत्ति थी। चौदह साल की उम्र में करमसद में खुले नये स्कूल से 22 वर्ष की उम्र में मेट्रीक की परीक्षा पास की।
वल्लभ भाई पटेल का विवाह लगभग 17 वर्ष की उम्र में झवेर बाई से हुआ। करमसद से 4 कि.मी. दूर स्थित ग्राम गाना के देसाई भाई पंजा भाई की पुत्री थी, झवेर भाई बेन। शादी के समय झवेर बेन की उम्र 12-13 वर्ष थी। शादी के 16 वर्ष बाद जनवरी 1909 में झवेर भाई बाई की मृत्यु उन्तीस वर्ष की कच्ची उम्र में पेट के अल्सर के कारण ''मेडम कामा हास्पिटल'' बम्बई में ऑपरेशन के दौरान हो गई। उस समय वल्लभ भाई की 2 संतानें - मणिबेन एवं डयाहा भाई की उम्र क्रमश: 5 वर्ष एवं 3 वर्ष की थी। पत्नी की मृत्यु के पश्चात वल्लभ भाई उम्रभर विधुर रहे, अर्थात उन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया।
सन् 1900 ईस्वी में उन्होंने गुजरात के खेड़ा जिले के गोधरा नामक स्थान पर मुख्तारी के स्वतन्त्र पेशे को अपनाया। वल्लभ भाई की गणना सफल वकीलों में शीध्र ही होने लगी। झवेर बाई (बेन) के साथ अपनी गृहस्थी उन्होंने यहीं से आरम्भ की। मुख्तारी करते हुये, इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर बनने की इच्छा बलवती हो चली थी, जिसके कारण प्रैक्टिस के शुरुवाती दौर से ही पैसा एकत्र करने लगे थे। पत्नी झवेर बाई ने इस कार्य में उनका पूरा सहयोग दिया।
विट्ठल भाई को इस बात का पता चला, तो उन्होंने स्वयं भी बैरिस्टर बनने की इच्छा जाहिर की। वल्लभ भाई ने अंग्रेज के इस इच्छा की पूर्ति के लिये अपनी कमाई से एकत्र पैसों को सहर्ष दे दिया। सन् 1905 से 1908 तक इंग्लैड में रहकर, बैरिस्टर बनकर विट्ठल भाई वापस भारत आये। सन् 1913 में अहमदाबाद में आयोजित 'अखिल भारतीय कूर्मि क्षत्रिय महासभा' के नवें महाअधिवेशन की अध्यक्षता बैरिस्टर विट्ठल भाई पटेल ने की थी। इस अधिवेशन में वल्लभ भाई पटेल भी शामिल हुये थे। वे सन् 1924 में 'राष्ट्रीय असेम्बली' के लिये चुने गये और 22 अगस्त सन् 1925 को सरकार द्वारा समर्थित श्री डी रंगाचारी को हरा कर 'सेन्ट्रल असेम्बली' के प्रेसिडेन्ट चुन लिये गये। विट्ठल भाई की योग्यता का लोहा वायसराय भी मानते थे। लोग प्यार से उन्हें प्रेसिडेन्ट पटेल भी कहते थे।
लगभग 30 वर्ष की उम्र में जब वल्लभ भाई, मुख्तारी की अपनी बहस कर रहे थे, उन्हें पत्नी के देहावसान की सूचना तार द्वारा मिली। विचलित हुये बिना, जिरह जारी रखकर अपनी कर्तव्य परायणता का परिचय दिया। प्लेग से ग्रसित अपने मित्र के पुत्र की सेवा अपनी जान की बाजी लगाकर की, जो उनके मित्र प्रेम को दर्शाता है। ऐसे भ्रातृ प्रेम, कर्तव्य परायणता, मित्र प्रेम, देशप्रेम स्पष्टवादिता से उनका जीवन ओतप्रोत था। ऐसा मानवतावादी उदाहरण केवल वल्लभ भाई के अनोखे व्यक्तितत्व में ही मिल पाता है।
सन् 1910 में 35 वर्ष की उम्र में वल्लभ भाई ने मुख्तारी पेशे से पैसा संचित कर बैरिस्टर की डिग्री हासिल करने इंगलैंड पहुंचे। शारीरिक कष्ट सहने की उनमें अपार क्षमता थी। इंगलैड प्रवास के दौरान, उनके पांव में नहरुआ रोग हो गया था। जो एक ऑपरेशन से ठीक नहीं हुआ। एक जर्मन डाक्टर ने वल्लभ भाई का दुबारा ऑपरेशन किया, वो भी बिना क्लोरोफार्म (निश्चेतक) के। पीड़ा सहने की असीम शक्ति को सराहते हुये, डाक्टर ने कहा कि पटेल जैसा जीवट मरीज, आज तक मैने नहीं देखा।
लंदन लाइब्रेरी में पुस्तक पढ़ने रोजाना सात मील पैदल चलकर जाते थे। बैरीस्टरी के चार - टर्म की परीक्षा को, पटेल ने तीन -टर्म में ही पुरी कर ली। बैरीस्टरी की परीक्षा में सारे 'राष्ट्र मण्डलीय' (Common Wealth) विद्यार्थियों के बीच में प्रथम रहे। 50 पौंड का नगद पुरुस्कार वल्लभ भाई पटेल को प्रदान किया गया। यश और सम्मान सहित सन् 1913 में इंगलैण्ड से भारत लौटे।
अहमदाबाद में सन् 1913 में बैरिस्ट बनकर वकालत प्रारम्भ की और अपने पेशे में पूर्णतया सफल रहे। वल्लभ भाई की पत्नी का देहान्त जब वे मात्र 30 वर्ष के थे, तभी हो गया था। परिवार वालों और मित्रों के लाख समझाने के बावजूद उन्होंने दूसरी शादी नहीं की। जीवन पर्यन्त विधुर रहे, लेकिन उनके चरित्र पर कलंक का एक भी टीका नहीं लगा। उनके एकमात्र पुत्र डयाहा भाई एवं पुत्री मणि बहन थीं। पिता के त्याग, बलिदान का असर पुत्री पर पड़ा और आजीवन पिता की सेवा करने के उद्देश्य से मणिबेन ने, विवाह नहीं किया। वल्लभ भाई, गांधी जी द्वारा चलाये गये चम्पारन (बिहार) के आन्दोलन से काफी प्रभावित हुये थे। सन् 1916 में 'रौलेट एक्ट' के विरुद्ध प्रदर्शन जुलूस में शामिल हुये थे। सन् 1917-18 में खेड़ा सत्याग्रह में गांधी जी के सहयोगी के रुप में भाग लिये थे। अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलनों में भाग लेते, सन् 1921 में बैरिस्टरी की जोरदार तरीके से चलते हुये, व्यवसाय को पूर्ण रुपेण त्यागकर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। सन् 1924 से 1928 तक अहमदाबाद नगर पालिका बोर्ड के अध्यक्ष रहे। अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचारी अंग्रेज इंजीनियर पर कार्यवांही कर निर्भिक्ता का प्रमाण दिया। कर अपवंचकों को उचित दन्ड देकर, कर संग्रहण में वृध्दि की। वल्लभ भाई पटेल के अंग्रेज विट्ठल भाई का लोहा वायसराय के मंत्री परिषद के अंग्रेजों ने भी माना, वे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कानूनविद थे।
अंग्रेजों ने किसानों के उत्पादन का एक चौथाई कर के रुप में लेने का आदेश पारित किया। जिसके विरुद्ध ''बारडोली'' के किसानों को संगठित कर सत्याग्रह आंदोलन चलाया। बारडोली सत्याग्रह आंदोलन लगभग 26 महीनों तक चला। इसमें कम से कम 3000 किसानों ने जैल यात्रा की। अंत में पटेल के नेतृत्व में यह आंदोलन सफल हुआ, फलस्वरुप अंग्रेजों को कर वृध्दि वापस लेना पड़ा। इस सफलता पर ''टाइम्स आफ इंडिया'' एग्लोइण्डियन पत्र ने पटेल को ''टाइगर आफ बारडोली'' की उपाधी दी। इस आंदोलन ने बैरिस्टर वल्लभ भाई पटेल को 'सरदार' वल्लभ भाई पटेल बना दिया। जिस कुशलता से बारडोली सत्याग्रह का संचालन एवं नेतृत्व किया उसने भारत के 80% किसानों के बीच में उन्हें 'सरदार' याने मुखिया/नेता के रुप में राष्ट्रीय ख्याति दिलवाई। गांधी जी ने सरदार पटेल के बारे में खेड़ा सत्याग्रह सफलता की खुशी में आयोजित जन सभा को संबोधित करते हुये कहा था, कि ''वल्लभ भाई को पहले बार देखने पर मैं मन में सोचने लगा, कि यह अक्खड़ आदमी कौन है, और यह क्या काम करेगा ? किन्तु मैं ज्यों-ज्यों उनके निकट आते गया, मेरा विश्वास बढ़ता ही गया, कि मुझे वल्लभ भाई ही चाहिये। यदि मुझे वल्लभ भाई नहीं मिले होते, तो जो काम आज सफल हुआ है, वह नहीं हुआ होता।''
सन् 1930 के असहयोग आंदोलन का नेतृत्व करते हुये, जेल गये। 1940 एवं 1942 के आंदोलन के दौरान भी जेल गये।
सन् 1931 में करांची में आयोजित ''भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस'' के राष्ट्रीय महाअधिवेशन की अध्यक्षता की और राष्ट्रीय नेता के रुप में उभरकर सामने आये। अब सारा देश उन्हें सरदार के रुप में जानने लगा। सरदार पटेल अनुशासन के पक्के थे, उनके अनुशासन के पक्के होने का प्रमाण था, कि उन्होंने पारसी कम्युनिटी के बैरीस्टर के.एफ. नरीमन एवं म.प्र. के मुख्यमंत्री डॉ. खरे तक को नहीं बख्शा। उनके अनुशासन के चलते ही गरमदल के नेता सुभाषचन्द्र बोस को भी कांग्रेस छोड़ना पड़ा। सन् 1932 में गांधी जी के साथ पुणे के येरवदा जेल में रहें। गांधी-अंबेडकर के बीच हुये, पूना पैक्ट के साक्षी रहे। ''भारत छोड़ो'' आंदोलन में सन् 1940-41 में सक्रियता से भाग लिया। ''करो या मरो'' आंदोलन में सन् 1942 में जेल गये। 15 जून सन् 1945 को सरदार पटेल को उपप्रधानमंत्री एवं स्वराष्ट्र मंत्री (गृह मंत्री) बनाया गया।
13 नवम्बर, 1947 को जूनागढ़ रियासत की यात्रा कर, सोमनाथ के ध्वस्त मंदिर का पुनरुद्धार करवाया, जिसे मोहम्मद गजनबी ने लुटा था। देश आजादी के प्रकाश को 15 अगस्त सन् 1947 को पा सका, अंग्रेजों के 250 वर्षो के राज्य से (1757 से 1947) भारत ने मुक्ति पाई। अंग्रेजी शासन से आजादी के समय भारत-पाकिस्तान बंटवारे की त्रासदी के साथ-साथ देशी राजवाडों की समस्या भी भारत के सामने मुहं खोले खड़ी थी। भारत का पहला प्रधानमंत्री, आल इण्डिया कांग्रेस कमेटी (AICC) के अध्यक्ष को बनाया जाना था। AICC अध्यक्ष देश के 15 प्रदेश कांग्रेस कमेटियों (PCC) के द्वारा बहुमत से चुना जाना था। सरदार पटेल का नाम 15 में 12 PCC ने AICC अध्यक्ष के लिये प्रस्तावित किया था। जवाहर लाल नेहरु के नाम का प्रस्ताव किसी ने नहीं किया। गांधी के ईशारे पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) ने नेहरु का नाम प्रस्तावित किया। गांधी ने बहुमत की बात नकारते हुये, सरदार पटेल से आग्रहकर, पं. नेहरु को AICC- अध्यक्ष, अर्थात् प्रधानमंत्री बनवाया। क्या महात्मा गांधी के इस निर्णय से प्रजातंत्र (बहुमत) की जीत हुई ?
अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के बाद शेष-भारत (पुराना भारत पाकिस्तान के अलग होने के बाद) के एक तिहाई क्षेत्रफल पर देशी रियासतें थी। जिसकी जनसंख्या लगभग एक चौथाई थी। अंग्रेजों के शासनकाल में 53% भारत का भूभाग सीधे उनके अधीन था, तथा 47% राजवाड़ों में अंग्रेज अपने राजनैतिक प्रतिनिधि (Political Agent) के माध्यम से राज करते थे। शेष भारत में राजवाडों की संख्या लगभग 563-565 थी। भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन, अंग्रेजों के विरुद्ध था। देशी राजवाड़ो को उससे कुछ लेना-देना नहीं था, क्योंकि देशी राजवाड़े अंग्रेजों दलाल (Agent) थे। देशी राजावाड़ों में कांग्रेस का ना तो प्रचार था न ही संगठन था। जब 15 अगस्त 1947 को भारत, अंग्रेजों से मुक्त हुआ, तो इसके मतलब था, कि 53% भारत ही अंग्रजों की दासता से मुक्त हुआ। 47% भारत अब भी 565 राजवाड़ों के माध्यम से गुलामी के शिकंजें में जकड़ा हुआ था। इस सबको बहुत कम समय में अपनी कुशाग्र प्रशासनिक क्षमता का परिचय देते हुये, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत में मिला लिया। सरदार पटेल द्वारा यह काम अहिंसा के माध्यम से आपसी समझौते के तहत कर लिया गया। विश्व इतिहास की यह बेमिसाल घटना है। जूनागढ़ एवं हैदराबाद की विद्रोही रियासतों को भी सरदार ने कूटनीति एवं बल प्रयोग कर भारत में मिला लिया। भारत छोड़ते तक्त अंग्रेजों ने देशी राजवाड़ों को स्वतन्त्र कर, उन्हें भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या ना होने की आजादी दे दी थी। निजाम हैदराबाद एवं नवाब जूनागढ़ पाकिस्तान में सम्मिलित होना चाहते थे। इनके इरादों को नाकाम करने में सरदार पटेल सफल रहे। जयपुर एवं दरभंगा के महाराजाओं ने अपने स्वतंत्र अस्तीत्व बनाये रखने की घोषणा की थी, उन्हें भारतीय गणतन्त्र में शामिल करवाने में सरदार पटेल ने सफलता पाई। अर्थात अंग्रेजों की गुलामी, विदेशी राजतन्त्र से 53% भारत को मुक्त करने के बाद, देशी राजाओं की (देशी राजतन्त्र) गुलामी से 47% भारत को सरदार पटेल ने मुक्ति दिलाई। अर्थात विदेशी राजतन्त्र अंग्रेजों से जकड़े 53% भारत की स्वतन्त्रता श्रेय का यदि गांधी जी एवं कांग्रेस को मना जाता है, तो (काले अंग्रेजों) देशी राजतन्त्र (देशी रियासत) में जकड़े 47% भारत के लोगों को राजतन्त्र से मुक्ति दिलाकर जनतन्त्र (प्रजातंत्र) का वरदान दिलाना केवल सरदार पटेल के बस की बात थी। यदि यह काम नहीं होता तो भारत के और टुकड़े होने से कोई भी नहीं रोक सकता था। कश्मीर का मामला आज अत्यंत पेचीदा हो चला है। 47% कश्मीर के भारत में विलय के मामले में पं. नेहरु ने हस्ताक्षेप किया, जिसके फलस्वरुप आधा कश्मीर पाकिस्तान एवं चीन के कब्जे में आ पाया जो आज भी अशांत है।
इतने बड़े काम का श्रेय 'लोह पुरुष', सदार वल्लभ भाई पटेल को जाता है। परन्तु इतने बड़े सत्य को झुठलाने की नापाक साजिश सरदार पटेल के निधन के बाद हुआ। अहमदाबाद में आयोजित सन् 1956 के ''भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस'' के राष्ट्रीय अधिवेशन में श्री अलगू राय ने विचारार्थ संशोधन प्रस्ताव पेश किया, भाव यह था, ''देशी राजवाड़ों को समाप्त कर वहां के लोगों को जनतन्त्र सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से मिला।'' इसका उल्लेख कांग्रेस के इतिहास में करना उचित होगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु जो सरदार के रहमोकरम पर प्रधानमंत्री बने थे, ने यह कह कर आपत्ती की कि इस ऐतहासिक तथ्य के आंकलन का समय अभी नहीं आया है, और प्रस्ताव समय पूर्व लाया जा रहा है। फलस्वरुप यह प्रस्ताव गिर गया। कांग्रेस एवं जवाहरलाल के इस रवैये से क्षुब्ध होकर सरदार पटेल के सुपुत्र डयाह भाई पटेल ने कांग्रेस से इस्तीफा यह सोचकर दिया कि ''सरदार पटेल जैसे महान देशभक्त द्वारा देश को एकता के सूत्र में पिरोने के प्रयास को कांग्रेस नेतृत्व मान्यता नहीं देता, तो ऐसे कांग्रेस में रहना बेकार है।
ऐसे महान नेता, भारत के शिल्पी, त्यागी, तपस्वी लौहपुरुष, सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन 15 दिसम्बर सन् 1950 को बिड़ला भवन, नेपियर रोड, बम्बई में सुबह 9.30 बजे हुआ। सरदार पटेल को मरणोपरान्त 1991 में भारत रत्न की उपाधि प्रदान की गई।
सरदार पटेल के प्रति अपने विचार व्यक्त करते हुये, उत्तर भारत के पेरियर (रामास्वामी नायकर) कहे जाने वाले 'अर्जक संघ' एवं बाद में ''शोषित समाज पार्टी'' के संस्थापक मां एड. रामस्वरुप वर्मा लिखते है:-
आकस्मिक निधन के पूर्व सरदार पटेल ने बम्बई से एक पत्र स्वराष्ट्र मंत्री की हैसियत से प्रधानमंत्री नेहरु को लिखा था, जो अब प्रकाशित हो चुका है। ''नेहरु के चीन के प्रति नरम रवैये से असमति प्रकट करते हुये लिखा है, कि तिब्बत को स्वतन्त्र राष्ट्र बने रहने में सहायता करनी चाहिये, तिब्बत में चीनी हस्तक्षेप का डटकर जवाब देना चाहिये।''
यदि तिब्बत में चीनी कब्जा का विरोध होता, तो भारत से 80 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर चीन का कब्जा नहीं होता। लड़ाई (भारत-चीन की) तिब्बत की भूमि पर होती, चीन आक्रामक घोषित होता। दुनिया की सहानुभूति भारत के साथ होती। सरदार पटेल की नीतियां एवं काम से देश सबल एवं सुट्टढ़ होता।
भारत के विदेशी शासन एवं देशी रियासतों से मुक्ति के पश्चात देश की एकता की महान रचना लौह पुरुष ने अपना सारा जीवन अर्पण कर दिया ऐसे महापुरुष के 'जन्म दिन' को 'एकता दिवस' के रुप में मनाने का अपील करते हैं। ''अर्जक संध'' इसे 'एकता दिवस' के रुप में सारे देश में मनाते आ रही है।
रामस्वरुप वर्मा का स्पष्ट मत है, कि यदि सरदार पटेल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते तो देश आज जिन समस्याओं से जूझ रहा है, वह नहीं होता। भारत दुनियां के नक्शे में एक सबल राष्ट्र बन उभर पाता। इस कल्पना में सच्चाई हैं।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का कहना हैं, कि ''जिस वातावरण में पलकर सरदार पटेल बड़े हुये, उसके संस्कारों की उनके हृदय पर अमिट छाप पड़ी, वे अत्यन्त स्पष्टवादी एवं कुशल प्रशासक हुये। मेरा अपना मानना है, कि यदि पटेल हमारे पहले प्रधानमंत्री होते, तो जितनी समस्याओं का देश को अभी सामना करना पड़ रहा है, उसमें से एक भी पैदा नहीं होती।''
पूर्व केन्द्रीय मंत्री बाबू जगजीवन राम- ''सरदार पटेल हमारे 'राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम' में अग्रण्य रहे वास्तव में वे इसकी शक्ति का श्रोत थे। 'बारडोली किसान सत्याग्रह' सरदार की संगठन शक्ति का अजेय कीर्ति-मान था। सरदार ने देशी रियासतों को मिलाकर नये भारत का निर्माण किया तथा देश ने सही मायने में उन्हें भारत के लौह पुरुष के रुप में जाना। भारतीय इतिहास में उनका नाम और गौरव पूर्ण इतिहास बना रहेगा।
सरदार पटेल का कथन है, कि कर्म निश्चय ही प्रभु की सच्ची उपासना है, किन्तु हास्य विनोद सच्चा जीवन है। जो व्यक्ति जीवन को बहुत अधिक गंभीरता से लेता है, तो उसे बहुत दुखमय जीवन बिताना पड़ता है। जो व्यक्ति हर्ष और विषाद को समा भाव से ग्रहण करता है, वही सच्ची जिन्दगी जीता है।'' एक अंग्रेज पत्रकार ने सरदार पटेल से पूछा What is your Culture (तुम्हारी संस्कृति क्या हैं?) पटेल जी ने तपाक से उत्तर दिया My Culture is agriculture’(मेरे संस्कृति खेती है।) मौलाना शौकत अली ने उन्हें बर्फ से ढ़का ज्वालामुखी, विनोबा भावे- 'सरदार पटेल गांधी की अहिंसक सेना के प्रधान सेनापति थे'' कहा था।
सरदार पटेल की अंत्येष्टि में राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद शामिल थे, लेकिन प्रधानमंत्री नेहरु शामिल नहीं हुये। बाद में पं. नेहरु ने संसद में सरदार पटेल को श्रध्दांजली देते हुये कहा ''यह एक बहुत बड़ी कहानी है, जिसे हम सब जानते हैं, सारा देश भी जानता है, इसे इतिहास के अनेक पृष्ठों में लिखा जायेगा जहां उन्हें नवीन भारत का निर्माता तथा एकीकरणकर्ता बतलाकर उनके विषय में अन्य बातें भी लिखी जायेंगी। स्वातन्त्रय संग्राम की हमारी सेनाओं के एक महान सेनापति के रुप में उनका हममें से अनेक व्यक्ति सम्भवत: सदा स्मरण करते रहेंगें। वह एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने संकट काल में एवं विजय की बेला में सदा ही ठोस एवं उचित परामर्श दिया। वह एक ऐसे मित्र, सहयोगी तथा साथी थे, जिनके ऊपर निर्विवाद रुप से 'शक्ति की ऐसी मिनार'के रुप में भरोसा किया जा सकता था, जिसने हमारे संकट के दिनों में हमारे दुविधा में पड़े हुये, हृदयों को पुन: शक्ति प्रदान की।
सरदार पटेल को समर्पित राष्ट्रकवि मैथलिशरण गुप्त जी की इन पंक्तियों को उद्धत करते हुये, सरदार पटेल को अंतिम श्रद्धांजली अर्पित है।
मातृभूमि के छै सौ खंडों को, जोत कलम नामक हल से।
एक खेत में परिणित जिसने किया, सबल से, कौशल से॥
अटल पुरुष अपना पटेल, वह तृप्त आज निज कौशल से॥
उपल कठिन मंजुल जलमय, है अतुलनीय हिमांचल से॥
सरदार वल्लभ भाई पटेल (31 अक्तूबर, 1875 - 15 दिसंबर, 1950) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृह मंत्री थे। उनका जन्म नडियाद, गुजरात मे हुआ था। भारत की स्वतंत्रता संग्राम मे उनका मह्त्वपूर्ण योगदान है। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री बने। उन्हे भारत का लौह पुरूष भी कहा जाता है। बल्लभभाई पटेल का जन्म एक कृषक परिवार में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लदबा() की चौथी संतान थे। सोमभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लन्दन जाकर उन्होने बैरिस्टर की पढाई पूरी की और वापस आकर गुजरात के अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बडा योगदान खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड(डिविजन) उन दिनोम भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी औअर उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी। बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिये ही उन्हे पहले बारडोली का सरदार औअर बाद में केवल सरदार कहा जाने लगा। सरदार पटेल १९२० के दशक में गांधीजी के सत्याग्रह आन्दोलन के समय कांग्रेस्स में भर्ती हुए। १९३७ तक उन्हे दो बार कांग्रेस के सभापति बनने का गौरव प्राप्त हुआ। वे पार्टी के अन्दर और जनता में बहुत लोकप्रिय थे। कांग्रेस के अन्दर उन्हे जवाहरलाल नेहरू का प्रतिद्वन्दी माना जाता था।
यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं, गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनो ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी। गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों(राज्यों) को भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। सन १९५० में उनका देहान्त हो गया। इसके बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर बहुत कम विरोध शेष रहा।
सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पीवी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं काश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। किन्तु नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है।